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Chappal Ki Suno Pukar - चप्पल की सुनो पुकार Funny Hindi Poem Written by Amrit Sahu

 

Chappal Ki Suno Pukar - चप्पल की सुनो पुकार Funny Hindi Poem Written by Amrit Sahu

चप्पल की सुनो पुकार

पैरो तले कुचला जाता हूँ
काँटे मेरे दुश्मन हैं 
कितने भी दुख सह जाऊँगा 
फिर भी खुश मेरा मन हैं 

शीत ऋतु में ठंड़ पड़ी 
तब अचानक कभी नहा पाता हूँ
पर ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में 
पसीने से भीगा जाता हूँ

कभी मैं भी बड़ा और मोटा था
घिस-घिसकर छोटा हुआ
कंकड़, काँटे चुभे मुझको 
तब उल्टे पाँव घर पहुँचा रोता हुआ

आँसु मेरे निकल नहीं पाए 
पर खुन की नदिया मैंने नहीं
मेरे मालिक ने मुझपर बरसाए    

अति प्रसन्न हूँ मैं अभी, क्योंकि
लोगो ने मेरी महिमा गाई 
गलत काम करने वाले को 
सभी ने चप्पल दिखाई

बहुत जलन होती हैं अब मुझको 
जुते-सैंडल के आने से 
भले कितने दुख झेलने पड़े पर
चाहता हूँ केवल लोग मुझे अपनाए

मालिक मेरे कहते हैं 
हम मंदिर जाएँगे जरुर 
मंदिर के बाहर छोड़, मुझे समझाया 
तुम ईश्वर से सदा रहना दूर 

भेदभाव क्यों करती हैं दुनिया
जुते केवल स्कूल जाते 
सारी दुनिया पढ़ती लिखती 
पर क्यों लोग मुझे भूल जाते 

जब तक काँटे, कंकड़ रहेंगे 
तब तक जन्म लेता रहूँगा 
कभी छोटा तो कभी बड़ा 
हर राह में दुख दुर करुँगा ।

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